मैं जो दर्द अनुभव करता हूँ , जो दुःख भोगता हूँ, जिस आनंद का रसपान करता हूँ , जिस सुख को महसूस करता हूँ, मेरी कवितायें उसी की अभिव्यंजना मात्र है ।
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Saturday 1 August 2015
माँ शहीद की रोती है
जिस देश में शहीदों का कद्र नहीं हो उस देश का भविष्य सुरक्षित नहीं रहता। अभी हाल ही में पंजाब में आतंकवादी घटना हुई जिसमे वहाँ एक एस पी बलजीत सिंह शहीद हो गए। जिस दिन याक़ूब मेनन को फांसी दी गयी उसी दिन पाकिस्तान बोर्डर पर एक भारतीय सैनिक को टार्गेट कर के शहीद कर दिया गया । एक आतंकवादी , सैकड़ों मासूमों , बेगुनाहों के हत्यारे को जब फांसी दी गयी तो उसके पूर्व एवं पश्चात उसकी जितनी चर्चा इस देश के बुद्धिजीवियों एवं मीडिया ने की उसका एक प्रतिशत भी इस देश के लिए शहीद होने वाले उपरोक्त बहादुरों के बारे में नहीं किया... क्या इस देश का मीडिया एवं बुद्धिजीवि वर्ग भी यही सोचता है कि सिपाही तो भर्ती ही मरने के लिए होता है ? तो याद रखिए इन्हीं सिपाहियों के पास भाग जाने का अवसर भी हमेशा ही होता और जब ये सिपाही भाग खड़े होंगे तो इन्हीं आतंकवादियों के हाथों जिनके लिए ये बुद्धिजीवि आँसू बहाते हैं सब मारे जाएँगे .... शहीदों का सम्मान कीजिये , नमन कीजिये उन्हें जो हँसते हँसते देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देते हैं ....... इन्हीं शहीदों को समर्पित है यह कविता ।
माँ शहीद की रोती है
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धरती का सीना फटता है
जब माँ शहीद की रोती है
सीने से लगा चित्र प्रिय की
वीरों की विधवा सोती है ...
पीघल जाता है लोहा भी
टकराकर जिनकी छाती से
धन दौलत से प्यार अधिक
जिनको देश की माटी से
उनके घर में छत नहीं है
बच्चों के आँख में मोती है
धरती का सीना फटता है
जब माँ शहीद की रोती है
जिनके साहस के दम पर
हम नींद चैन की सोते हैं
अपने सबल कंधो पर जो
भार देश का ढोते है
उनके बच्चों के नींद पर
दखल भूख की होती है
धरती का सीना फटता है
जब माँ शहीद की रोती है
जिनके पद की चापों से
हिमालय में होता कंपन था
हर हर महादेव की बोली से
करता दुश्मन क्रंदन था
पेट भर रोटी के सपने
उनकी विधवा सँजोती है
धरती का सीना फटता है
जब माँ शहीद की रोती है
देश हेतू हुए न्यौछावर
देश की खातिर प्राण दिया
माता पिता पत्नी से बढ़कर
अपने देश को मान दिया
इनके वृद्ध पिता के तन
फटी हुई एक धोती है
धरती का सीना फटता है
जब माँ शहीद की रोती है
............ #नीरज कुमार नीर / 24/01/2015
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