Saturday 20 December 2014

कसैली निंबौरिया


मुझे अच्छी लगती है 
निंबौरियां और 
उसका कसैलापन
पीली निबौरियों  की कड़वाहट
जब घुलती है 
गौण कर देती हैं  
अंतर के आत्यंतिक कड़वाहट को भी।  
तुमने जो भर रखी है 
मुट्ठी में  निंबौरिया 
क्या एक दोगी मुझे?
मैं आत्म विस्मृत होना चाहता हूँ
कुछ पल के लिए। 
मैं लौटा दूँगा तुम्हें 
तुम्हारे हाथों की मिठास और
नीम की घनी छांव
   
...... नीरज कुमार नीर........
neeraj kumar neer 

5 comments:

  1. वाह ... प्राकृति के मीठे रंग में रंगी लाजे=वाब रचना ...

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  2. कई बार कड़वाहट ही मिठास का रास्ता खोलती है. सुन्दर लिखा है.

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  3. कड़वी चीजें और कड़वे इन्सान हमारे लिए लाभदायक हो सकते हैं! आदरणीय नीरज जी चिंतन योग्य, काव्य प्रस्तुति! साभार!
    धरती की गोद

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  4. kyaa baat hai neeraj ji bahut badhiya

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  5. सुखद एहसास के लिए कड़वा घूँट भी कभी कभी लेना होता है ! मधुर रचना नीरज जी

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