मैं जो दर्द अनुभव करता हूँ , जो दुःख भोगता हूँ, जिस आनंद का रसपान करता हूँ , जिस सुख को महसूस करता हूँ, मेरी कवितायें उसी की अभिव्यंजना मात्र है ।
Thursday 22 November 2012
Sunday 18 November 2012
पुष्प
एक सुन्दर स्त्री हाथों में पुष्पों का गुच्छ लिए खड़ी थी , उन्ही को देखकर इस कविता का अनायास जन्म हुआ, जिसे आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ :
कौन है ज्यादा सुन्दर, मन मेरा भरमाये
कौन है ज्यादा सुन्दर, मन मेरा भरमाये
हाथों में पुष्प लिए पुष्प खड़ा मुस्काए ..
सजी बैंगनी वस्त्रों में, धवल मुक्ता का हार लिए.
चमक रही माथे की बिंदिया, अधर मंद मुस्काए
सौम्य, मनोहर, मन्जुल मुख, नैन बड़े कजरारे
पुष्प को जब पुष्प निहारे, पुष्प बड़ा शरमाए ..
नीरज कुमार ‘नीर’
सजी बैंगनी वस्त्रों में, धवल मुक्ता का हार लिए.
चमक रही माथे की बिंदिया, अधर मंद मुस्काए
सौम्य, मनोहर, मन्जुल मुख, नैन बड़े कजरारे
पुष्प को जब पुष्प निहारे, पुष्प बड़ा शरमाए ..
नीरज कुमार ‘नीर’
Friday 16 November 2012
दीप
हाथों में पूजा का थाल लिए,
गोरी बैठी करके श्रृंगार.
गोरी बैठी करके श्रृंगार.
जगमग जगमग दीप जले,
छलके आँखों से निश्च्छल प्यार.
स्वच्छ नीर सी अविरल,
बहती ज्यूँ सरिता की धार.
अधरों पे लाली, भाल पे टीका,
मुख पे लिए काँति अपार.
मधुर मिष्टान्न सी सुख देती,
सौंदर्य हुआ स्वयम साकार .
नीरज कुमार ‘”नीर”
छलके आँखों से निश्च्छल प्यार.
स्वच्छ नीर सी अविरल,
बहती ज्यूँ सरिता की धार.
अधरों पे लाली, भाल पे टीका,
मुख पे लिए काँति अपार.
मधुर मिष्टान्न सी सुख देती,
सौंदर्य हुआ स्वयम साकार .
नीरज कुमार ‘”नीर”
Wednesday 14 November 2012
स्मृति
कमरे के छोटे दरीचे से,
उतरती शाम की पीली धूप
हो गयी मेरे वजूद के आर पार.
मेरे जज्बातों को सहलाती हुई.
कमरे के बाहर हिली कुछ परछाई सी,
बिम्बित हुआ कुछ स्मृति के दर्पण में,
कुछ स्मृतियाँ रहती है,
मन के हिंडोले में अविछिन्न , अविक्षत.
दीवार पे टंगी......शीशे में मढी तस्वीर,
मकड़ी ने डाल दिए हैं जाले,
पीली धुप दमक रही है,
तुम्हारी मुस्कान अनवरत है.
खुले आंगन से झाकता अम्बर,
तुम्हारी तलाश में
खंगालता है, हरेक कोना,
अपनी विफलता पर आहत है.
पुराने घर में ढलती
उदास सी शाम.
तालाब के शांत जल में
किसी ने फेंका है पत्थर.
........नीरज कुमार ‘नीर’
Sunday 4 November 2012
सुन्दर सी एक बाला रे.
सुरमई आँखों वाली सुन्दर सी इक बाला रे
बचपन की यादों के संग, तेरी याद आती है.
तेरी अधरों की मदिर मुस्कान याद आती है,
मैं मस्त हो जाता था पीकर जैसे हाला रे
सुरमई आँखों वाली सुन्दर सी इक बाला रे
प्रथम प्रीत के वह प्रथम .... सन्देश याद आते हैं,
तेरी मेरी मुलाकात .... पल पल याद आते हैं,
स्मृतियाँ गुंथी हुईं .. जैसे पुष्पों की माला रे
सुरमई आँखों वाली..... सुन्दर सी इक बाला रे.
आम्र कुञ्ज के भीतर, जब तुम मिलने आती थी,
वृक्ष की शाखाएं .....और थोड़ी झुक जाती थी .
वृक्ष भी हो जाता था कुछ शायद मतवाला रे.
सुरमई आँखों वाली .... सुन्दर सी इक बाला रे.
नदी किनारे रेत पर ....महल बनाया करते थे,
हम रहेंगे साथ में, स्वप्न सजाया करते थे.
तुम मेरी घर वाली .. मैं तेरा घरवाला रे.
सुरमई आँखों वाली....... सुन्दर सी इक बाला रे.
.
सबसे छुप छुप के मैं जब तेरा हाथ पकड़ता था,
याद है मुझको, जोरों से, दिल मेरा धड़कता था.
तेरा भाई लगता था , मुझको अपना साला रे।
सुरमई आँखों वाली............ सुन्दर सी इक बाला रे.
.........................
गाँव की पगडंडी जिसपर साथ चला करते थे,
आग उगलते जेठ की, परवाह कहाँ करते थे.
तुम मेरी दिलवाली थी , मैं तेरा दिलवाला रे.
सुरमई आँखों वाली ... सुन्दर सी इक बाला रे.
..........................
फागुनी बयार जब भी तुमको छूकर आती थी,
वासंती फूलों की खुशबू , मन को रिझाती थी .
मैं आनंदित रहता था, पीकर प्रेम प्याला रे.
सुरमई आँखों वाली सुन्दर सी इक बाला रे.
......................
बादलों में चाँद का छुप जाना याद आता है,
शरमा के नयनों का झुक जाना याद आता है.
हर मौसम लगता मन भावन रंग रंगीला रे.
सुरमई आँखों वाली सुन्दर सी इक बाला रे.
...................... #नीरज कुमार ‘नीर’ ...........
#neeraj_kumar_neer
#chand #love #pyar #ganw #bachpan
Saturday 3 November 2012
जब भी तुम आती हो
जब भी तुम आती हो,
एक कोमल भाव जगाती
हो.
मेरे ह्रदय के चित्र
पटल पर
चित्र नए दिखलाती
हो.
तेरे नैनों के जादू
से
भाव नए भर जाते है.
कैसे भी हो दर्द
पुराने,
घाव सभी भर जाते
हैं.
चौदहवीं के चाँद सी
नए अनुराग जगाती हो,
मेरे जीवन के
मरुस्थल को
गुलशन तुम बनाती हो.
गुमशुम गुमशुम रहने
वाला
मेरा दिल भी गाता
है.
हाथों में मेरे हाथ
लिए
जब तुम गीत सुनाती
हो.
एक तेरे आने से
जीवन,
खुशियों से भर जाता
है.
जीवन के अंधियारे
में
जगमग दीप जलाती हो.
जब भी तुम आती हो
जीवन मधुमय हो जाता
है.
मेरे उसर ह्रदय
प्रदेश में
सुन्दर फूल खिलाती
हो.
तुम्हारे गेसुओं से
खेलूं
तुम्हे बाँहों में
ले लूँ
मेरी धडकनों को छूकर
नए अरमान जगाती हो.
..........नीरज
कुमार...
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