Wednesday 25 April 2012

हौसला


मुर्दों की बस्ती में
जीवन तलाश रहा हूँ
नंगे हाथों से
पत्थर तराश  रहा हूँ.

मेरे हाथ लहूलुहान हैं
मूझे गम नहीं है
मेरा हौसला यारों
मगर कम नहीं है.

अपने हौसलों से
मुर्दों में जान फुकुंगा
जब तक सफल नहीं होता
तब तक नहीं रुकुंगा

तपती दुपहरी है
सामने सहरा है
जुबां पर भी मेरे
हुकूमत का पहरा है.

पावों में छाले हैं
ओठ प्यासे हैं
हाकिमों के पास
झूठे दिलासे  है .

हर कदम पे सफलता की
नई इबारत लिखूंगा
बीच राहों में मगर
नहीं कभी रुकूंगा.
.......... नीरज कुमार 'नीर' 

4 comments:

  1. waah... kya umang bhari kavita hai... bahut khub!!!

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  2. प्रभावी शब्द

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  3. जज्बा आपका जबरदस्त है तो सफलता तो मिलेगा ही. सुंदर रचना.

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